
पुलिस विभाग या सत्ताधरी नेताओ की सहायता बिना विकास दुबे द्वारा इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे पाना नामुमकिन है.
कानपुर: उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के बिकरू गांव में जो हुआ उसे पुरे देश ने देखा, इस हादसे ने पुरे देश को हिला दिया. कैसे विकास दुबे नामक अपराधी ने एनकाउंटर की परिभाषा ही बदल के रख दी. ये समझना मुश्किल हो गया की पुलिस उसे पकड़ने गई थी या विकास दुबे के बिछाये जाल में फसने गई थी. एक सवाल जो उत्तर प्रदेश के लिए कलंक बन गया है अगर यहाँ का पुलिस महकमा सुरक्षित नहीं है तो ये सोचने वाली बात है की उस प्रदेश की आम जनता कितनी सुरक्षित होगी. कानून व्यवस्था को लेकर बड़े बड़े दावा करने वाली उत्तर प्रदेश की योगी सरकार आज खुद कठघड़े में खड़ी नजर आ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़ी कार्यवाही करने का आदेश जरूर जारी किया लेकिन घटना को 40 घंटे होने के बाद भी विकास दुबे को अभी तक पुलिस पकड़ने में नाकाम रही है.
विकास दुबे की सत्ता में हनक होने के साथ कई पुलिस वालो से भी सम्बन्ध थे. जिस वजह से पुलिस की कार्यवाही होने से पहले ही उससे पता चल गया जिससे वह जाल बिछाकर इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने में सफल हो गया. घटना में चौबेपुर थाने के थानेदार विनय तिवारी की भूमिका भी शक के घेरे में है. पहले जहां पीड़ित राहुल की रिपोर्ट दर्ज करने से इनकार करना और वहीं पुलिस टीम के साथ जब गिरफतारी के लिए गए तो सबसे पीछे रहते हुए वहां से भाग निकलना. फिलहाल चौबेपुर थानेदार विनय तिवारी को सस्पेंड कर दिया गया है. इस मामले पर भी जांच की जा रही है.
आपको बता दे की दो दिन पहले मोहिनी नेवदा निवासी राहुल तिवारी नाम के शख्स ने चौबेपुर थाने में विकास दुबे के खिलाफ जमीन विवाद के चलते अपनी जान को खतरा बताते हुए विकास दुबे के खिलाफ तहरीर दी थी. लेकिन एसओ विनय तिवारी ने मामला दर्ज नहीं किया. जब सीओ बिल्हौर ने मामले में हस्तक्षेप किया तब जा के कही मामला दर्ज किया गया. बताया जा रहा है की इसी मामले में जब एसओ विनय तिवारी विकास दुबे से पूछताछ करने उसके घर गए तो पूछताछ के दौरान विकास की एसओ के साथ हाथापाई भी हो गई थी. जिसके बाद एसओ वहां से वापस लौट आए.
सीओ बिल्हौर और एसओ चौबेपुर के बीच बानी रहती थी तनातनी
सूत्रों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार कुछ महीने पहले सीओ ने चौबेपुर क्षेत्र में एक बड़ा जुआ पकड़ा था. जिसकी जांच में खुलासा हुआ कि जुआ खिलवाने वाले जुआ खिलाने के बदले एक भारी भरकम रकम थानेदार को पहुंचते थे. जिसके बाद उन्होंने उसके खिलाफ मामला दर्ज करवाया. ऐसे और भी कई मामले रहे जब सीओ और एसओ के बीच विवाद हुआ.